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यदुलू॑को॒ वद॑ति मो॒घमे॒तद्यत्क॒पोत॑: प॒दम॒ग्नौ कृ॒णोति॑ । यस्य॑ दू॒तः प्रहि॑त ए॒ष ए॒तत्तस्मै॑ य॒माय॒ नमो॑ अस्तु मृ॒त्यवे॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yad ulūko vadati mogham etad yat kapotaḥ padam agnau kṛṇoti | yasya dūtaḥ prahita eṣa etat tasmai yamāya namo astu mṛtyave ||

पद पाठ

यत् । उलू॑कः । वद॑ति । मो॒घम् । ए॒तत् । यत् । क॒पोतः॑ । प॒दम् । अ॒ग्नौ । कृ॒णोति॑ । यस्य॑ । दू॒तः । प्रऽहि॑तः । ए॒षः । ए॒तत् । तस्मै॑ । य॒माय॑ । नमः॑ । अ॒स्तु॒ । मृ॒त्यवे॑ ॥ १०.१६५.४

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:165» मन्त्र:4 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:4


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उलूकः) अव्यक्तभाषी-गुप्तभाषी (यत्) जो (वदति) बोलता है (तत्-मोघम्) वह व्यर्थ होता है (कपोतः) वेशभाषा से विचित्र दूत (यत्-अग्नौ) जो अग्नि में (पदं कृणोति) पैर रखता है, दग्ध हो जाता है, भेद से वार्ता करके (यस्य प्रहितः-एषः-दूतः) जिसका भेजा यह दूत (तस्मै यमाय) उस नियन्त्रणकर्ता (मृत्यवे) मारक के लिए हमारा (एतत्-नमः-अस्तु) यह वज्र हो-है, हम भय नहीं करें ॥४॥
भावार्थभाषाः - यदि परराष्ट्र का भेजा हुआ दूत पूर्वोक्त मित्रता न करे, किन्तु स्पष्ट न कहकर या मन्त्रणा न करके व्यर्थ-संग्राम अग्नि में पैर रखता है, भेद से वर्तालाप करके चला जाता है, जिसका वह दूत है, उस शासक अन्य को मारने के इच्चुक के लिए हमारे पास भी वज्र शस्त्रास्त्र बल है, भय करने की आवश्यकता नहीं अर्थात् जिस राष्ट्र के शासक में मित्रता की इच्छा नहीं, संग्राम पर तुला है, तो उसके साथ बड़े-बड़े शस्त्रास्त्रों से संग्राम करना चाहिए ॥४॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (उलूकः-यत्-वदति) उलूकोऽव्यक्तभाषी गुप्तभाषी “वल संवरणे” [भ्वादि०] “तत ऊक् प्रत्ययः” [उणादि० ४।४१] यद् वदति (तत्-मोघम्) तद् व्यर्थं भवतु (कपोतः-यत्-अग्नौ पदं कृणोति) वेशभाषाभ्यां विचित्रो दूतः-अग्नौ पदं धारयति दग्धो भवति भेदेन वार्तां कृत्वा (यस्य प्रहितः-एषः-दूतः) यस्य दूतः प्रेरितोऽयम् (तस्मै यमाय मृत्यवे-एतत्-नमः-अस्तु) तस्मै नियन्त्रे मारकायास्माकं वज्रः-एष भवतु ॥४॥